मुद्दतों के बाद लिखने बैठे हैं
आज भी ग़म का खज़ाना खोल बैठें हैं
चारों और हसी है, मुस्कुराहटें हैं
पर दिल न जाने क्यों ग़मगीन है
पता नहीं लगा पा रहा है एक ऐसी वजाह
जिसके सुलझाने से मुस्कान खिल उठे
न जाने वोह क्या बात है
जो नैनों में आंसू ले आई है
चुपके से क्या हम रो लें?
शायद आंसुओं के बह जाने पर
ये ग़म का खज़ाना कुछ देर के लिया अनजाना हो जाये
या फिर कुछ ऐसी बात हो जाए
जो चेहरे पर मुस्कान खिलादे.. ?
Nice one!
LikeLike
This comment has been removed by the author.
LikeLike
Enik onnum manassilayilla….. 😦
arayilsharath@gmail.com
LikeLike